Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharajप्रेमानंद जी महाराज : हर व्यक्ति अपने जीवन में ऐसे संबंधों की खोज करता है जो उसे बिना किसी शर्त के स्वीकार करें, उसकी गलतियों के बावजूद उसे थामे रखें और कभी धोखा न दें। लेकिन जब एक व्यक्ति दूसरे से ऐसी अपेक्षा करता है, तो अक्सर उसे निराशा ही मिलती है। संत प्रेमानंद महाराज का मानना है कि ऐसा सच्चा और निस्वार्थ प्रेम केवल भगवान का होता है। भगवान कभी किसी का साथ नहीं छोड़ते, चाहे इंसान कितनी भी गलतियाँ क्यों न करे।
भगवान का प्रेम: अडिग और निस्वार्थ भगवान का प्रेम- अडिग, अटल और निस्वार्थ
रिश्तों में लोग अक्सर एक-दूसरे से अपेक्षाएं रखते हैं। जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो प्रेम में दरार आ जाती है। लेकिन भगवान का प्रेम बिना किसी शर्त के होता है। महाराज जी कहते हैं, 'भगवान हमसे केवल प्रेम नहीं करते, बल्कि भावनाएं भी व्यक्त करते हैं।' फर्क यह है कि हमें लंबे समय तक श्रद्धा और धैर्य से उनसे जुड़े रहना होता है। जब इंसान भक्ति में निरंतरता लाता है, तो उसे धीरे-धीरे यह एहसास होता है कि भगवान सचमुच उसके साथ हैं। यही अनुभव उस भक्त के जीवन में सबसे बड़ा प्रमाण बनता है कि सच्चा प्यार केवल भगवान का होता है।
भगवान से जुड़ने में कठिनाई भगवान से जुड़ने में कठिनाई क्यों आती है?
लोग अक्सर मूर्तियों के रूप में भगवान को देखते हैं और सोचते हैं कि वे क्यों कुछ नहीं बोलते। इस कारण कई बार विश्वास डगमगा जाता है। लेकिन प्रेमानंद महाराज जी बताते हैं कि भगवान मौन नहीं हैं, बल्कि वे श्रद्धा और आस्था की भाषा में हमसे संवाद करते हैं। समस्या यह है कि माया हमें भ्रमित करती है। हमें लगता है कि कोई हमसे प्रेम नहीं करता, जबकि असलियत यह है कि भगवान हर पल हमारे साथ खड़े रहते हैं।
राष्ट्रप्रेम और ईश्वरप्रेम राष्ट्रप्रेम और ईश्वरप्रेम का अद्भुत संगम
महाराज जी के विचारों का सबसे प्रेरक पहलू यह है कि वे राष्ट्रप्रेम को ईश्वरप्रेम के समान मानते हैं। वे कहते हैं, 'राष्ट्र से प्रेम करने वाला व्यक्ति उतना ही महान है, जितना ईश्वर का सच्चा भक्त।' उनके अनुसार, संत और सैनिक एक समान दर्जा रखते हैं। सैनिक निस्वार्थ भाव से राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने को तैयार रहता है। उसका प्रेम किसी लालच या स्वार्थ से नहीं जुड़ा होता। यही निस्वार्थ प्रेम उसे ईश्वर की सेवा के बराबर बना देता है। महाराज जी के इस संदेश से स्पष्ट होता है कि असली राष्ट्रप्रेम त्याग, कर्तव्य और बलिदान से प्रकट होता है।
जीवन की परीक्षाएं हमें मजबूत बनाती हैं जीवन की परीक्षाएं
जीवन में कठिनाइयां आना अनिवार्य है। महाराज जी कहते हैं कि यदि जीवन में परीक्षाएं न हों, तो हमें कभी यह पता ही नहीं चलेगा कि हमारी कमजोरी कहां है।
हर चुनौती हमें मजबूत बनाती है और भविष्य की राह के लिए तैयार करती है।
असल में, असफलता भी भगवान का दिया हुआ उपहार है। यह हमें झकझोरती है, सिखाती है और हमें अगले पड़ाव के लिए तैयार करती है।
ईश्वर से मांगने की सही चीजें ईश्वर से मांगें तो क्या मांगें?
मनुष्य अक्सर भगवान से धन, पद, यश, सफलता जैसी भौतिक वस्तुएं मांगता है। लेकिन महाराज जी स्पष्ट कहते हैं कि यह सब नाशवान है। यदि मांगना ही है, तो भगवान का साथ मांगो। क्योंकि जब भगवान मिलेंगे, तो संसार अपने आप ही मिल जाएगा।
यदि जगत और जगदीश दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो जगदीश को चुनना ही वास्तविक बुद्धिमानी है। क्योंकि जब जगदीश मिलेंगे तो जगत तो उन्हीं का है वो तो अपने आप ही मिल जाएगा।
समर्पण और शांति समर्पण से मिलती है शांति
आज हर कोई बेचैनी, घबराहट और डर से गुजर रहा है। इसका कारण है कि हमने भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण नहीं किया।
महाराज जी कहते हैं कि जब समर्पण आ जाएगा, तो मन से भय, चिंता, संशय और दुख सब मिट जाएंगे।
समर्पण मनुष्य को निर्भय, निश्चिंत और स्थिर बना देता है। यही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। इसलिए नामजप बहुत जरूरी है। नामजप से हमारी चेतना धीरे-धीरे परमानंद में समर्पित हो जाती है।
साधना और सेवा का संतुलन साधना और सेवा का संतुलन ही सच्चा धर्म
सिर्फ पूजा-पाठ करना ही धर्म नहीं है। महाराज जी का मानना है कि इंसान को परिवार की जिम्मेदारी निभाते हुए, कठिन परिश्रम से धन अर्जित करना और साथ में समाज की सेवा भी करनी चाहिए। वे कहते हैं कि
'पेट भरना तो जीव-जंतु भी कर लेते हैं। इंसान का असली धर्म है साधना करना, सत्कर्म करना और समाज के लिए उपयोगी बनना।'
यानी धर्म और जीवन का संतुलन ही सुख और सफलता का आधार है।
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